Monday 25 February 2013

एकान्तिक प्रलाप


"जब निराशा काले बादलों की तरह उम्मीद के सूरज को छुपा लेती है..
जब लगने लगता है कि कोशिशे रंग नही ला रही..रिश्तों मे गर्माहट खोती जा रही है,सच फरेब के पर्दों में छुपा हुआ है..हौसला डर की गिरफ्त मे है..प्यास शाश्वत है और पानी सिर्फ मरीचिका..तो अक्सर सोचती हूं कि अपनी ताक़त पर भरोसा होना ही असली ताक़त है..कि जब हम अकेले होते हैं तभी तो अपने साथ होते हैं...

4 comments:

  1. दीवारों के कान ही नहीं, आँख और नाक भी होती है.......

    जब आप खुद से बातें कर रही होती हैं तो कोई सुन रहा होता है........

    बड़ा खूबसूरत एकालाप है जनाब...

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  2. दीवारों से मिलकर रोना अच्छा लगता है..
    पहले पाठक का हार्दिक स्वागत और शुक्रिया भी..

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  3. मेरी आवाज़ सुनो .. प्यार का साज सुनो .. :-)

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  4. जरूर आखिर आप भी तो स्नेह के धागे से ही बंधे चले आए हैं..

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