पारिजात
Wednesday 24 September 2014
Friday 12 September 2014
प्रतीक्षा
जाते हुए
यूं देकर गए थे तुम
सुर्ख गुलाब का वो गमला
जैसे कर रहे हो वादा
फिर लौट कर आने का
यूं देकर गए थे तुम
सुर्ख गुलाब का वो गमला
जैसे कर रहे हो वादा
फिर लौट कर आने का
नन्हे नाज़ुक पौधे पीली गुलाबी लिली के
जिन्हे खिलना था अगले मौसम
कुछ अधखिली सी रातरानी
जिसका महकना था बेहद ज़रूरी
जिन्हे खिलना था अगले मौसम
कुछ अधखिली सी रातरानी
जिसका महकना था बेहद ज़रूरी
कुछ इस तरह सौपा था मुझे
तुलसी का बिरवा
जैसे विष्णु ने दिया हो
वृन्दा को कोई वचन
तुलसी का बिरवा
जैसे विष्णु ने दिया हो
वृन्दा को कोई वचन
वक्त दबे पांव गुजरा है यहां से
गमलों में आया है मौसम
चटकीले सुर्ख गुलाबों वाला
गमलों में आया है मौसम
चटकीले सुर्ख गुलाबों वाला
नाज़ुक लिली को सौप दिया था
धूप के एक चंचल टुकड़े को
दुगुना हुआ है इस साल
वो चमकीला पीला गुलाबी टुकड़ा
धूप के एक चंचल टुकड़े को
दुगुना हुआ है इस साल
वो चमकीला पीला गुलाबी टुकड़ा
रात भर जागती है रातरानी की खुश्बू
उम्मीद की बेनींद आँखों मे
उम्मीद की बेनींद आँखों मे
खूब धूमधाम से रचाया था
हरिप्रिया का ब्याह इस एकादशी
मुझे अब भी वादों पर एतबार है
और एक समूचा बागीचा
प्रतीक्षारत है..
हरिप्रिया का ब्याह इस एकादशी
मुझे अब भी वादों पर एतबार है
और एक समूचा बागीचा
प्रतीक्षारत है..
Wednesday 10 September 2014
चीटियां
जाने कहाँ से आती हैं ये
ढेरों अदृश्य चीटियाँ
देह पर चलती हुई सी
ढेरों अदृश्य चीटियाँ
देह पर चलती हुई सी
छूकर देखती हूँ खुद को
जाने कहाँ छुप जाती हैं स्पर्श से बचकर
जाने कहाँ छुप जाती हैं स्पर्श से बचकर
कभी कभी वे सिर्फ चलती हैं
भारहीन अदृश्य सरसराहट सी
भारहीन अदृश्य सरसराहट सी
वे होती हैं ,जब वे नहीं भी होती
नहीं वे कभी काटती नहीं
वे तो बस मन को रखती हैं भयाक्रान्त
नहीं वे कभी काटती नहीं
वे तो बस मन को रखती हैं भयाक्रान्त
आखिर वे काट भी तो सकती हैं
वे सक्षम तो हैं
क्या वे हैं ..
वे सक्षम तो हैं
क्या वे हैं ..
Sunday 10 March 2013
खुद से बातें
5:41pm
"गुजिश्ता वक़्त के दामन में कुछ दर्द ऐसे भी होते हैं कि जिनसे निजात पाने की हर कोशिश..दर्द की खाई मे गहरे, और गहरे उतरते जाने की कैफियत से रूबरू होना है... भरोसे के टूटने की खामोश आवाज ताज़िन्दगी तीखे शोर की तरह दिमाग़ में गूंजती रहती है.. अपनों से छले जाने का दंश सीने में फांस की तरह दरकता रहता है.. और उस पर मुस्कुराने की सजा.. इसी को तो सब समझदार होना कहते हैं.. पर अगर कोई नासमझ ही निकले तो ?? ऐसे लोगों का क्या?? ज़िन्दगी के दामन में इन नामुरादों के लिए भी कुछ तो होगा?? होना चाहिए ना??"
Wednesday 27 February 2013
उदास लम्हा
"कभी कभी ऐसा क्यों होता है कि दुनिया भरी भरी और मन खाली खाली सा होता है..खुश होने की हजार वजहे होती हैं दिल बेवजह उदास कोने खोजने लगता है..जब कोई भूला ही न हो,पर कोई याद भी सताती हो..होंठों पर मुस्कुराहट इतरा रही हो और आंखे भींग जाने का बहाना तलाश कर रही हों..
शायद उदासियों के मौसम बिन बुलाये आ जाते हैं..जैसे कोई करीबी दोस्त आ जाये बिना किसी खबर के बेवजह ही...."
Monday 25 February 2013
एकान्तिक प्रलाप
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Sunday 24 February 2013
दोपहर किताब और तनहाई
खूबसूरत किरदारों के किस्सों से भरी ज़रा पुरानी सी किताब के झक्क सफेद पन्नों पर सर्दियों की दोपहर की तीखी धूप गिरती है..कमज़ोर नज़र वाली मेरी आँखे ऐसे चौंधिया जाती हैं,जैसे किसी बचपन के दोस्त ने जानबूझ कर मुस्कुराते हुए धूप में शीशा मेरी आँखों की जानिब चमकाया हो..हथेलियों ने जाने कब दुपट्टा आँचल की माफिक माथे पर खिसका दिया है..बेसाख्ता बुआ याद आती हैं,जिन्हे गर्मियाँ इस लिए भाती थी कि बहुओं के सिर पर आँचल आ जाते थे,चाहे धूप से बचने के लिए ही सही..किताब के दाहिनी तरफ वाले पन्ने पर मेरी परछाई है,जैसे किसी किरदार का अक्स हो..बायां पन्ना अब भी रोशन है साफ शफ्फाफ.. हर जिंदगी किसी कहानी का किरदार ही तो है.किसी रोज पढेगा कोई,तो क्या जान पाएगा इस पल को..इस चमक को..पीठ पर टिके इस गुनगुने एहसास को..धूप की तुर्शी और आँचल की छाँव के साथ को....
खूबसूरत किरदारों के किस्सों से भरी ज़रा पुरानी सी किताब के झक्क सफेद पन्नों पर सर्दियों की दोपहर की तीखी धूप गिरती है..कमज़ोर नज़र वाली मेरी आँखे ऐसे चौंधिया जाती हैं,जैसे किसी बचपन के दोस्त ने जानबूझ कर मुस्कुराते हुए धूप में शीशा मेरी आँखों की जानिब चमकाया हो..हथेलियों ने जाने कब दुपट्टा आँचल की माफिक माथे पर खिसका दिया है..बेसाख्ता बुआ याद आती हैं,जिन्हे गर्मियाँ इस लिए भाती थी कि बहुओं के सिर पर आँचल आ जाते थे,चाहे धूप से बचने के लिए ही सही..किताब के दाहिनी तरफ वाले पन्ने पर मेरी परछाई है,जैसे किसी किरदार का अक्स हो..बायां पन्ना अब भी रोशन है साफ शफ्फाफ.. हर जिंदगी किसी कहानी का किरदार ही तो है.किसी रोज पढेगा कोई,तो क्या जान पाएगा इस पल को..इस चमक को..पीठ पर टिके इस गुनगुने एहसास को..धूप की तुर्शी और आँचल की छाँव के साथ को....
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