Wednesday 24 September 2014

ख्वाब


"
संभल संभल कर रखने थे क़दम
जिन्दगी की ऊँची नीची अनजान राहों पर
मुहब्बत की चाशनी मे डूबे
कुछ नाजुक मीठे लम्हों को
छोड आये थे यादों की वादी में..

किसी दिन जमींदोज हुए से
वही भीगे लम्हे
अतीत की गोद से
उठ खड़े होते हैं, लेकर एक अंगड़ाई

उस दिन
लहलहाती है हर तरफ
फसल ख्वाबों की........
"

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