Sunday 24 February 2013

दोपहर किताब और तनहाई


खूबसूरत किरदारों के किस्सों से भरी ज़रा पुरानी सी किताब के झक्क सफेद पन्नों पर सर्दियों की दोपहर की तीखी धूप गिरती है..कमज़ोर नज़र वाली मेरी आँखे ऐसे चौंधिया जाती हैं,जैसे किसी बचपन के दोस्त ने जानबूझ कर मुस्कुराते हुए धूप में शीशा मेरी आँखों की जानिब चमकाया हो..हथेलियों ने जाने कब दुपट्टा आँचल की माफिक माथे पर खिसका दिया है..बेसाख्ता बुआ याद आती हैं,जिन्हे गर्मियाँ इस लिए भाती थी कि बहुओं के सिर पर आँचल आ जाते थे,चाहे धूप से बचने के लिए ही सही..किताब के दाहिनी तरफ वाले पन्ने पर मेरी परछाई है,जैसे किसी किरदार का अक्स हो..बायां पन्ना अब भी रोशन है साफ शफ्फाफ.. हर जिंदगी किसी कहानी का किरदार ही तो है.किसी रोज पढेगा कोई,तो क्या जान पाएगा इस पल को..इस चमक को..पीठ पर टिके इस गुनगुने एहसास को..धूप की तुर्शी और आँचल की छाँव के साथ को....

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